पौराणिक संबंध:-
स्कंद पुराण में राजा दशरथ की कहानी बताई गई है, जिन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए ऋषि ऋष्यश्रृंग के मार्गदर्शन में पुत्रकामेष्टि यज्ञ किया था, जिसके परिणामस्वरूप भगवान राम और उनके भाइयों का जन्म हुआ। इसी तरह, संतान प्राप्ति पूजा करने से निःसंतान दंपत्तियों को अनुकूल परिणाम प्राप्त होते हैं।
वैदिक संदर्भ:-
- "प्रजापतिं यज्ञैर देवयज्ञं संप्रप्नुयात्, पुत्रार्थं शांतिम् आचारेत्" (ऋग्वेद* 10.85.45)
अनुवाद:- उचित अनुष्ठान और यज्ञ के साथ पूजा करने से परिवार में शांति और संतान की प्राप्ति होती है।
- "संतानं सुखं समृद्धं प्राप्यते यज्ञ संस्थुथम" (अथर्ववेद 14.2.5)
अनुवाद:- यज्ञों और पवित्र मंत्रों के आशीर्वाद से संतान और समृद्धि प्राप्त होती है।
लाभ:-
- गर्भधारण और प्रजनन संबंधी समस्याओं से संबंधित बाधाओं को दूर करता है।
- पुत्र दोष और संतान दोष जैसे ग्रह दोषों को शांत करता है।
- स्वस्थ और गुणवान बच्चे के लिए आशीर्वाद मांगा जाता है।
- पारिवारिक वातावरण में शांति और सद्भाव लाता है।
- दम्पति के बीच भावनात्मक और आध्यात्मिक बंधन को मजबूत करता है।
पूजा के लिए निर्धारित समय:-
पूजा आदर्श रूप से शुभ तिथियों और नक्षत्रों के दौरान की जाती है, खासकर गुरुवार को, क्योंकि वे भगवान विष्णु और समृद्धि से जुड़े होते हैं। सबसे उपयुक्त तिथि निर्धारित करने के लिए वैदिक ज्योतिषी से परामर्श करना उचित है।
प्रमुख अनुष्ठान:-
- गणेश पूजन: बाधाओं को दूर करने के लिए भगवान गणेश का आह्वान करें।
- संतान गोपाल मंत्र जाप: भगवान कृष्ण से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए मंत्र का जाप करना।
"ओम देवकी सुता गोविंदा वासुदेव जगत्पते देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गतः"
- हवन: प्रजनन-विशिष्ट मंत्रों के साथ अग्नि देवता को आहुति देना।
- अभिषेक: देवताओं को दूध, शहद और घी से स्नान कराना।
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