वैदिक संदर्भ:-
"सर्प दोषं निवर्तते रुद्र मंत्रं जपेत् सुधीरघं" (अथर्ववेद* 5.23.11)
अनुवाद :– रुद्र मंत्रों के जाप से सर्प दोष के दुष्प्रभाव दूर होते हैं।
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काल सर्प दोष तब होता है जब जन्म कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच संरेखित होते हैं, जिससे जीवन में संघर्ष और बाधाएं आती हैं। यह पूजा भगवान शिव का आह्वान करती है ताकि दोष को बेअसर किया जा सके और ग्रहों के प्रभावों को संतुलित किया जा सके।
"सर्प दोषं निवर्तते रुद्र मंत्रं जपेत् सुधीरघं" (अथर्ववेद* 5.23.11)
अनुवाद :– रुद्र मंत्रों के जाप से सर्प दोष के दुष्प्रभाव दूर होते हैं।
संकुल | समूह, व्यक्तिगत, युगल, परिवार |
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